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प्र नु यदे॑षां महि॒ना चि॑कि॒त्रे प्र यु॑ञ्जते प्र॒युज॒स्ते सु॑वृ॒क्ति। अध॒ यदे॑षां सु॒दिने॒ न शरु॒र्विश्व॒मेरि॑णं प्रुषा॒यन्त॒ सेना॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra nu yad eṣām mahinā cikitre pra yuñjate prayujas te suvṛkti | adha yad eṣāṁ sudine na śarur viśvam eriṇam pruṣāyanta senāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। नु। यत्। ए॒षा॒म्। म॒हि॒ना। चि॒कि॒त्रे। प्र। यु॒ञ्ज॒ते॒। प्र॒ऽयुजः॑। ते। सु॒ऽवृ॒क्ति। अध॑। यत्। ए॒षा॒म्। सु॒ऽदिने॑। न। शरुः॑। विश्व॑म्। आ। इरि॑णम्। प्रु॒षा॒यन्त॑। सेनाः॑ ॥ १.१८६.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:186» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (एषाम्) इन विद्वानों के (महिम्ना) महिमा से (प्र, चिकित्रे) उत्तमता से विशेष ज्ञानवान् विद्वान् के लिये (प्रयुजः) उत्तमता से योग करते उनको (नु) शीघ्र (प्रयुञ्जन्ते) अच्छे प्रकार युक्त करते हैं (अध) इसके अनन्तर (यत्) जो जन (एषाम्) इन अच्छे योग करनेवालों के (सुदिने) उत्तम समय में (विश्वम्) समस्त (इरिणम्) कंपायमान जगत् को (शरुः) मारनेवाला वीर जन (सेनाः) सेनाओं को जैसे (न) वैसे (आ, प्रुषायन्त) सेवन करें (ते) वे (सुवृक्ति) सुन्दर गमन जिसमें हो उस उत्तम सुख वा मार्ग को प्राप्त होते हैं ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजजन पूरी विद्यावाले अध्यापकों को विद्याप्रचार के लिये प्रवृत्त करते हैं, वे महिमा—बड़ाई को प्राप्त होते हैं। जो किये को जाननेवाले कुलीन शूरवीरों की सेनाओं को पुष्ट करते, वे सदा विजय को प्राप्त होते हैं ॥ ९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ।

अन्वय:

यद्य एषां महिना प्र चिकित्रे प्रयुजो नु प्रयुञ्जन्ते। अध यदेषां सुदिने विश्वमिरिणं शरुः सेना नेवा प्रुषायन्त ते सुवृक्ति प्राप्नुवन्ति ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (नु) सद्यः (यत्) ये (एषाम्) विदुषाम् (महिना) महिम्ना (चिकित्रे) विज्ञानवते (प्र) (युञ्जन्ते) (प्रयुजः) प्रकर्षेण युञ्जन्ति (ते) (सुवृक्ति) सुष्ठु व्रजन्ति यस्मिंस्तम् (अध) अनन्तरे (यत्) ये (एषाम्) प्रयोक्तॄणाम् (सुदिने) शोभने समये (न) इव (शरुः) हिंसकः (विश्वम्) सर्वम् (आ) समन्तात् (इरिणम्) कम्पितं जगत् (प्रुषायन्त) सेवन्ताम् (सेनाः) ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये राजानः पूर्णविद्यानध्यापकान् विद्याप्रचाराय प्रवर्त्तयन्ति ते महिमानमाप्नुवन्ति। ये कृतज्ञकुलीनशूरवीरसेनाः पुष्यन्ति ते सदा विजयमाप्नुवन्ति ॥ ९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजे पूर्ण विद्यावान अध्यापकांना विद्याप्रचारासाठी प्रवृत्त करतात त्यांना महत्त्व प्राप्त होते. जे कृतज्ञ कुलीन, शूर-वीर सेनेला पुष्ट करतात ते सदैव विजय प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥